ब्लॉग में खोजें

Tuesday, 10 March 2015

एक इलीट बुद्धिजीवी 'रि'टायर्ड महाभियोग #MKataju

अनुज शुक्ला। इतिहास तो ऐसे ही लिखा जाता है न। जरूरी नहीं कि किसी बात से सब सहमत हो। भाई जी असहमति के भी अपने तर्क हैं। आप भले समझे कि बात बेदम - बेतुकी है लेकिन तर्कहीन बात करने वाला भी अपनी बात की वजनदारी में सौ साक्ष्य गिना देगा आपको, बस गिनती सिख लो जी आप। अपनी-अपनी बहस अपने-अपने तर्क, आप अपना खेमा चुन लीजिए - अपनी सुविधा के अनुसार। बहरहाल, जब बात बेतुक, बेदम ही हो रही है तो इस तर्कहीन गपशप का एक विषय आज अपने काटजू साहब को बना लेते हैं। वे फिलहाल ताजगी के लिए कैलिफोर्निया में हवाखोरी कर रहे हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर आप उनके धड़ाधड़ फेसबुक अपडेट को लेकर यह बिल्कुल न समझिए कि अमेरिका उनकी रूह में ही धंस गया है। भाई वे जज हैं, और वो क्या कहते हैं - कानून की भाषा में फ्रीडम ऑफ स्पीच का इस्तेमाल और उसकी सीमा जानते हैं। अपनी जबान, अपना इतिहास और अपने तर्क। अब तर्क है तो है- क्या कर लोगे साब। हां, तो मूल बात यो है कि साहब ने कल गांधी जी की ऐसी की तैसी कर दी, बेचारे - महात्मा, कितने दीवाने हैं लोग उनके। गांधी तो आदती हो गए हैं इन सब चीजों के लिए, भला हो हिन्दुस्तान का। लेकिन अपने सुभाष, उन्होंने ये बात ना सोची होगी कि कोई भला यूँ नाप देगा उन्हें भी। हुआ यूँ कि आज काटजू साहब ने फेसबुक पर एक स्टेटस लिखा कि 'गांधी ब्रिटिश के और सुभाष चंद्र बोस जापान के एजेंट थे। दोनों भारतीयों के हित के लिए नहीं बल्कि विदेशी शक्तियों के लिए काम कर रहे थे।' इस स्टेट्स के बाद तो साहब इतिहासकारों की बाढ़ सी आ गई, उनके वाल पर। कई कमेंट, कई विचार और अपनी सहमति-असहमति। कुछ देर बाद फिर दूसरा काटजू पोस्ट- कि कैसे सुभाष जापानी एजेंट थे। काटजू कहते हैं कि अगर वे जापानी एजेंट नहीं थे तो जब जापानियों ने सरेंडर कर दिया तो उन्होंने भी क्यों सरेंडर कर दिया। वे ब्रिटिशर्स के खिलाफ गुरिल्ला लड़ाई जारी रख सकते थे। क्या जापान जीतता तो आप दावे से कह सकते हैं कि वह भारत को आजादी दे ही देता? नहीं, वे भारत को जापानी उपनिवेश बनाते और यहाँ के संसाधनों का दोहन करते। वास्तव में बोस को जापानी इस्तेमाल कर रहे थे। इसमें कोई शक नहीं कि बोस एक बहादुर और व्यक्तिगत तौर पर ईमानदार आदमी थे। लेकिन वे जापानी फ़ांसीवाद के एजेंट ही साबित होते हैं। (अब फ़ांसीवाद मत पूछना यार मुझसे) देखा, बस कुछ देर में ही काटजू ने कैसे एक इतिहास के अध्याय को बांच दिया। मनोरंजन के लिए गालिब का शेर भी छोड़ दिया अगले दिन तक के लिए - शेर कुछ यूँ है - गालिब हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से बैठे हैं हम तहय्या-ए-तूफान किए हुए नोट- कुछ स्क्रीन शॉट चीजों को समझने के लिए नहीं मजे लेने के लिए। भाई इतिहास नए तरह का बनाया जा रहा है, फ़्रेश और वायरल कंटेंट से आप भी रिच होइए और नीचे कमेंट बॉक्स में अपना विचार भी छोड़िए। कसम से, नींद आ रही है नहीं तो इसे और बढ़िया बना के पढ़ाता बॉस, अब जो है उसी से काम चलाइए। गुड नाइट :P

No comments:

Post a Comment