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Monday 19 July 2010

प्रभाष जोशी की परंपरा क्या है?


अंबरीश कुमार
आज पंद्रह जुलाई को हमारे संपादक प्रभाष जोशी का जन्मदिन है जिनकी परंपरा का निर्वाह करते हुए आज भी जनसत्ता के हम पत्रकार राज्य सत्ता की अंधेरगर्दी के खिलाफ डटे हुए है .पिछली बार अपने जन्मदिन पर होने वाले कार्यक्रम में उन्होंने दिल्ली आने को कहा पर नही आ पाया .इस बार उनकी परम्परा की मार्केटिंग करने वालों ने हम जैसे तमाम पत्रकारों को पूछा भी नही जो तमाम लोगो के पलायन के बाद इस अखबार को छोड़ नहीं पा रहे है क्योकि जीवन का एक बड़ा हिस्सा इस अखबार के लिए समर्पित किया है .प्रभाष परंपरा के तहत न कोई श्रीश चन्द्र मिश्र ,सुशील कुमार सिंह, सुरेंद्र किशोर,कुमार आनंद ,देवप्रिय अवस्थी ,सत्य प्रकाश त्रिपाठी ,शम्भू नाथ शुक्ल ,उमेश जोशी , मनोहर नायक ,मंगलेश डबराल,अरविन्द उप्रेती ,पारुल शर्मा ,अनिल बंसल ,हरिशंकर व्यास ,संजय सिंह ,अमित प्रकाश सिंह आदि को याद कर रहा है और न ही जय प्रकाश साही को .जनसत्ता की बुनियादी टीम के पत्रकार आलोक तोमर का आज ही कैंसर से इलाज शुरू हुआ और वे कई घंटे अस्पताल में कीमो कराते रहे पर प्रभाष जोशी की इस नई परंपरा के कोई झंडाबरदार इस पत्रकार को देखने तक नही पंहुचे . मुझे याद है जब आलोक तोमर के विवाह का भोज दिल्ली में हुआ था तो दिल्ली का मीडिया उमड़ पड़ा था .और अब जिन रामनाथ गोयनका के नाम पुरस्कार पाकर लोग धन्य महसूस करे है, वे खुद आलोक तोमर और सुप्रिया राय को आशीर्वाद देने आये और घंटों रहे .पर आज आलोक तोमर के पास कोई नही था .अपवाद भाभी उषा जोशी रही जिहोने आलोक की सुध ली .
मुझे तभी याद आया कि प्रभाष जोशी निधन से ठीक एक दिन पहले लखनऊ में एक कार्यक्रम के बाद मुझसे मिलने सिर्फ इसलिए आये क्योकि मेरी तबियत खराब थी .करीब ढाई घंटा साथ रहे और एयरपोर्ट जाने से पहले जब पैर छूने झुका तो कंधे पर हाथ रखकर बोले -पंडित सेहत का ध्यान रखो बहुत कुछ करना है .यह प्रभाष जोशी परंपरा थी .मुझे याद आया जब जयप्रकाश नारायण के सहयोगी शोभाकांत जी के कहने पर मै रामनाथ गोयनका से मिला और उन्होंने प्रभाष जोशी से मिलने भेजा था .१९८७ की बात है प्रभाष जोशी के कार्यालय सचिव राम बाबु से मैंने बताया - रामनाथ गोयनका जी ने भेजा है प्रभाष जी से मिलना चाहता हूँ .राम बाबू ने प्रभाष जोशी से बात कर कहा - तीन महीने तक मिलने का कोई समय नही है .यह संपादक प्रभाष जोशी ही हो सकते थे जो अपने मालिकों से भी अलग सम्बन्ध रखते थे .वे ही प्रभाष जी सीढी चढ़ कर मिलने आए थे .अगर आज वे रहते तो आलोक तोमर की क्या ऐसी अनदेखी होती जिसे वे अपने पुत्र की तरह मानते थे .
आज प्रभाष परंपरा के वाहक वे बहादुर पत्रकार भी है जो धंधे में मालिक का काम होने के बाद मिठाई का डिब्बा लेकर माफिया डीपी यादव की चौखट पर शीश नवाते है और वे पत्रकार भी है जो एक्सप्रेस प्रबंधन से साजिश कर प्रभाष जोशी को संपादक पद हटवाते है .वे भी है जो १९९५ के दौर में प्रभाष जोशी को पानी पी पी कर कोसते थे और हमारे खिलाफ एक संघी संपादक के निर्देश पर चुनाव भी लड़े और हारे भी . जिन ताकतों को हमने कई बार हराया वे सभी अब प्रभाष परम्परा वाले हो गए है . न्यास में बाकि धंधेबाज लोगों की की सूची देखकर उत्तर प्रदेश के किसी पुराने पत्रकार से बात कर ले ट्रांसफर पोस्टिंग से करोड़ों का वारा न्यारा करने वालो का भी पता चल जायेगा . भाजपा के दो पूर्व अध्यक्ष भी प्रभाष परम्परा वाली टीम में है . बाबरी ध्वंश के बाद प्रभाष जोशी ने जिन कट्टरपंथी ताकतों से मुकाबला किया आज उन्ही ताकतों का जमावड़ा उनकी परंपरा के नाम पर उनकी साख ख़त्म करने पर आमादा है .चंद्रशेखर जी के ट्रस्ट पर कब्ज़ा करने वाले अब प्रभाष जोशी के साथ भी वही व्यवहार करना चाहते है .
तभी तो पत्रकार कृष्ण मोहन सिंह ने पूछा - ये ओझा और गाड़िया किस प्रभाष परम्परा से आते है .इसपर मेरा जवाब था - गनीमत है उन रिश्तेदार पुलिस अफसरों को नहीं रखा जो विवाद होने के बाद फर्जी मुकदमा दर्ज करने से लेकर चार्जशीट तक लगवाते है .कुल मिलकर नैतिकता का लबादा ओढ़कर अपनी मार्केटिंग के लिए प्रभाष जोशी परंपरा का यह ढोंग अपन के गले नही उतरने वाला .इलाहाबाद में जो ये कर चुके है उससे वहा के छात्र पहले से ही आहत है .इलाहाबाद में ही पत्रकारिता के छात्रों के संघर्ष का नेतृत्व करते हुए प्रभाष जोशी ने कहा था -अगर सर कटाने की नौबत आई तो प्रभाष जोशी सबसे आगे होगा .
प्रभाष जोशी को सही मायने भी तभी याद किया जा सकता है जब दिल्ली से लेकर दूर दराज के इलाकों में मीडिया को बाजार की ताकत से मुक्त करते हुए वैकल्पिक मीडिया के लिए ठोस और नया प्रयास हो .भाषा के नए प्रयोग की दिशा में पहल हो और प्रभाष जोशी के अधूरे काम को पूरा किया जाए.पर यह सब काम उस गिरोहबंदी और खेमेबंदी से नही होने वाला जिसकी शुरुवात दिल्ली में कुछ पेशेवर लोगो ने की है की है . प्रभाष जोशी देश के अकेले पत्रकार थे जिन्होंने देश के कोने कोने में काम करने वाले पत्रकारों से सम्बन्ध बनाया और निभाया .


(इस पोस्ट के लेखक अंबरीश कुमार, उन विरले पत्रकारों में शामिल हैं जिन्हें प्रभाष जोशी के साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यह लेख ’नई पीढी’ ब्लाग से लिया गया है।)