राजनीति तमाम तरह की संभावनाओं के लिए मशहूर है. यह खुद को एक ऐसे मोड़ पर दोहराता है जिसकी कल्पना नहीं होती है. कई बार यह जैसा दिखता है, होता इसके बिलकुल उलट है. लोकसभा चुनाव 2019 के लिए ये सब फिलहाल उत्तर प्रदेश में हो रहे राजनीतिक बदलाव में देखा जा सकता है. यूपी में एक तरह से अमित शाह जिस सोशल इंजीनियरिंग और गणित के जरिए बेजोड़ सफलता रचकर इतिहास बनाते आए अब वहीं चीजें उनके लिए मुश्किलें लेकर आ रही हैं. यूपी में अखिलेश यादव और मायावती में गठबंधन हो चुका है.
दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे. महागठबंधन की बातें सामने आ रही थीं और इसमें कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के शामिल होने की बात की जा रही थी. लेकिन अब यह तय हो गया है कि कांग्रेस अब इस महागठबंधन का हिस्सा नहीं होगी. रालोद सीटों की वाजिब हिस्सेदारी न मिलने की वजह से नाराज है. संभवत: बाहर भी रहे.
तो क्या सच में लोकसभा चुनाव 2019 के लिए यह सिर्फ सपा और बसपा का गठबंधन होगा? अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूंगा "नहीं". कांग्रेस महागठबंधन में न शामिल होकर भी गठबंधन का ही "हिस्सा" है. आप पूछ रहे होंगे कैसे ? और क्यों ऐसा है.https://youtu.be/XXO_Otze1ak
इस गठबंधन को लेकर जो सामने दिख रहा है उसके पीछे भी एक तस्वीर है. दरअसल, यूपी में कांग्रेस की ऐसी हैसियत नहीं है कि वो गठबंधन में शामिल होकर तमाम सीटों पर गठबंधन के साझीदार के रूप में सपा बसपा को लाभ पहुंचा पाए. हालांकि गणित के लिहाज से गठबंधन से बाहर रहकर कांग्रेस तमाम सीटों पर सपा बसपा को लाभ पहुँचाने की स्थिति में रहेगी. कैसे
दरअसल, कांग्रेस गठबंधन से बाहर रहकर कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. हकीकत में कांग्रेस जीत सकने वाली सीटों के अलावा अन्य सीटों पर ऐसे उम्मीदवार देगी जो बीजेपी और उसके अलायंस को वोटों के लिहाज से नुकसान पहुंचाएं. इससे सीधे सीधे सपा बसपा और बसपा के अलायंस को फायदा मिलेगा.
कांग्रेस, सपा और बसपा में जो डील हुई है पर दिख नहीं रही है उसके मुताबिक सपा और बसपा कांग्रेस की जीत सकने वाली सीटों पर ऐसे ही उम्मीदवार देंगे. यूपी में बीजेपी की पिछली जीत वोटों के कई हिस्सों में बंट जाने की वजह से हुई थी. बीजेपी का अपना वोट सुरक्षित था लेकिन विपक्षी वोटों में बिखराव था.
अब जमीन पर बीजेपी के खिलाफ वोटों के बिखराव का काम कांग्रेस के उम्मीदवारों से की जाने की तैयारी है. जाहिर सी बात है कि बीजेपी को हुए नुकसान का फायदा किसे मिलेगा?
सपा बसपा और कांग्रेस ने फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनाव में इसी फ़ॉर्मूले को आजमा कर सफलता हासिल कर चुकी हैं. फूलपुर में सपा ने उम्मीदवार दिया था, बसपा ने सपा का समर्थन किया था और कांग्रेस ने मनीष मिश्रा के रूप में ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में उतारा था. मनीष मिश्रा को 19 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. कांग्रेस ने गोरखपुर में सुर्हिता चटर्जी को मैदान में उतारा था.
आने वाले दिनों में यूपी की सियासत देखना दिलचस्प होगा.
दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे. महागठबंधन की बातें सामने आ रही थीं और इसमें कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के शामिल होने की बात की जा रही थी. लेकिन अब यह तय हो गया है कि कांग्रेस अब इस महागठबंधन का हिस्सा नहीं होगी. रालोद सीटों की वाजिब हिस्सेदारी न मिलने की वजह से नाराज है. संभवत: बाहर भी रहे.
इस गठबंधन को लेकर जो सामने दिख रहा है उसके पीछे भी एक तस्वीर है. दरअसल, यूपी में कांग्रेस की ऐसी हैसियत नहीं है कि वो गठबंधन में शामिल होकर तमाम सीटों पर गठबंधन के साझीदार के रूप में सपा बसपा को लाभ पहुंचा पाए. हालांकि गणित के लिहाज से गठबंधन से बाहर रहकर कांग्रेस तमाम सीटों पर सपा बसपा को लाभ पहुँचाने की स्थिति में रहेगी. कैसे
दरअसल, कांग्रेस गठबंधन से बाहर रहकर कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. हकीकत में कांग्रेस जीत सकने वाली सीटों के अलावा अन्य सीटों पर ऐसे उम्मीदवार देगी जो बीजेपी और उसके अलायंस को वोटों के लिहाज से नुकसान पहुंचाएं. इससे सीधे सीधे सपा बसपा और बसपा के अलायंस को फायदा मिलेगा.
कांग्रेस, सपा और बसपा में जो डील हुई है पर दिख नहीं रही है उसके मुताबिक सपा और बसपा कांग्रेस की जीत सकने वाली सीटों पर ऐसे ही उम्मीदवार देंगे. यूपी में बीजेपी की पिछली जीत वोटों के कई हिस्सों में बंट जाने की वजह से हुई थी. बीजेपी का अपना वोट सुरक्षित था लेकिन विपक्षी वोटों में बिखराव था.
अब जमीन पर बीजेपी के खिलाफ वोटों के बिखराव का काम कांग्रेस के उम्मीदवारों से की जाने की तैयारी है. जाहिर सी बात है कि बीजेपी को हुए नुकसान का फायदा किसे मिलेगा?
सपा बसपा और कांग्रेस ने फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनाव में इसी फ़ॉर्मूले को आजमा कर सफलता हासिल कर चुकी हैं. फूलपुर में सपा ने उम्मीदवार दिया था, बसपा ने सपा का समर्थन किया था और कांग्रेस ने मनीष मिश्रा के रूप में ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में उतारा था. मनीष मिश्रा को 19 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. कांग्रेस ने गोरखपुर में सुर्हिता चटर्जी को मैदान में उतारा था.
आने वाले दिनों में यूपी की सियासत देखना दिलचस्प होगा.