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Monday, 9 March 2015
जब दबंग, सिंघम देख सकते हैं तो #दमलगाकेहईशा क्यों नहीं
#अनुज शुक्ला। कभी आपने भारतीय टीम को ऐसे गेदबाजी करते हुए देखा है. भारतीय टीम ने शुरू में शानदार गेदबाजी करते हुए विरोधी टीम के धडाधड आठ विकेट गिरा दिए हैं, विपक्षी टीम ने मात्र 90 या 100 रन बनाए हैं. लेकिन भारतीय गेदबाजों द्वारा बनाया गया यह रोमांच तब हवा हो जाता है, जब विरोधी टीम का 10वां विकेट गिरते-गिरते स्कोरबोर्ड पर 175, 200 भी मानने में कोई हर्ज नहीं :p - से ज्यादा रन टंग जाते हैं. क्रिकेट का यह काल्पनिक उदाहरण (हालांकि भारतीय टीम ने इस तरह का प्रदर्शन कई बार किया है) हालिया रीलिज #दमलगाकेहईशा के लिए है. कुल मिलाकर स्टोरी, एक्टिंग और लोकेशन के लिहाज से यह एक बेहतरीन फिल्म है. जिस दौर की और जहां की कहानी है उसे दिखाने के लिए इसमें छोटी-छोटी बातों का भी काफी ख्याल रखा गया है. कमाल ही कहेंगे इसे. जो कुछ रचा गया है. लेकिन इंटरवल के बाद पता नहीं क्यों फिल्म धीरे-धीरे बहुत कमजोर हो जाती है.
इसका एक कारण यह हो सकता है कि डायरेक्टर महोदय समय के अभाव में घड़ी का दबाव नहीं झेल पाए (अपने यहां एक बड़ी दिक्कत समय की है, फॉर्मूला बन गया है की फला समय में फिल्म ख़त्म हो जानी है) और पिक्चर ख़तम होते-होते एक अच्छी कहानी पूरी करने में जल्दबाजी की गई और कई अनुपयोगी चीजें थोप दी गई. नतीजा इंटरवल के बाद कहानी इतनी तेज हो गई कि एक शानदार नशा चढ़ने से पहले ही उतर गया. शुरुआती आनंद का पूरी तरह कबाड़ा कर डाला. थोड़ा और समय देना था न भाई, जब कहानी ऐसी चुनी थी तो. फिर भी पूरी टीम को दिल से बधाई- भूमि कमाल हो तुम यार. और सबसे ज्यादा बधाई भाई आयुष्मान खुराना को. इन्हें भूमि से कमतर बिल्कुल न आंकिए इस फ़िल्म में. विकी डोनर के बाद इस फिल्म से उनके करियर को गति मिलेगी.
पुनश्च : सॉरी अन्ना भाई. इस फ़िल्म से उत्तर भारतीय बैकग्राउंड के लोग ज्यादा जुड़ेंगे. जब आप दबंग, सिंघम और पता नहीं क्या-क्या देख सकते हैं, तो इसे भी देख ही लीजिए. इसलिए कि ऐसी फिल्मों का बनते रहना भी तो जरूरी है. और हां कुमार शानू को ट्रिब्यूट देना तो ठीक था भाई लेकिन संघ की ली क्यों. भाजपाई शानू को स्क्रिप्ट सुनाया था क्या आपने :p
नोट : ये मोबाइल समीक्षा है। 6 इंच के कीबोर्ड पर अब इससे अच्छा कुछ और नहीं लिख सकता। बच्चे की जान लोगे क्या यार। :)
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