(दोस्त मोदी के साथ गुरुमंत्र लेते अखिलेश)
लखनऊ से खबरची। रिहाई मंच ने समाजवादी पार्टी के 2017 के चुनावी घोषणा-पत्र में मुसलमानों के मुद्दों से अखिलेश यादव पर पीछे हटने का आरोप लगाया है। मंच ने आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाहों को छोड़ने व उनके पुर्नवास-मुआवजा, सच्चर-रंगनाथ आयोगों की रिपोर्टों पर सांप्रदायिक जेहनियत के तहत अमल न कर पाने वाले अखिलेश यादव से पूछा हैे कि यह मुद्दे इस बार गायब क्यों है। सिर्फ चुनावी घोषणा-पत्र से गायब कर देने मात्र से सवाल गायब नहीं होंगे जनता चुनावों में इसका हिसाब मांगेगी।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि अखिलेश यादव को यह भ्रम है कि वह आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मौलाना खालिद मुजाहिद, जियाउल हक, दादरी में अखलाक की हत्या, मुजफ्फरनगर, कोसीकलां, फैजाबाद, अस्थान में दंगे करवाते रहेंगे और मुसलमान उन्हें विकास के नाम पर वोट दे देगा। इस घोषणापत्र में अल्पसंख्यकोें की सुरक्षा व धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के वादे पर रिहाई मंच अध्यक्ष ने पूछा कि जब पुलिस की हिरासत में ही मौलाना खालिद मुलाहिद की हत्या कर दी जाती हो और अखिलेश उसको स्वाभाविक मौत बताते हों या अखलाक को घर से खींचकर भाजपा के लोग मार डालते हों और सरकार हत्यारों को बचाने के लिए सीबीआई जांच नहीं करवाती और हत्यारे को तिरंगे में लपेटा जाता हो, जिनकी सरकार में रघुराज प्रताप सिंह जैसे गुण्डों को मंत्री बनाकर ईमानदार पुलिस अधिकारी जियाउल हक की सरेआम हत्या करवा दी जाती हो वह किस मुंह से मुसलमानों की सुरक्षा की बात कर सकते हैं। पूरी दुनिया ने देखा कि मुजफ्फरनगर में मां-बेटियों की अस्मत लूटी जा रही थी, बच्चे ठंड से मर रहे थे और बाप-बेटा सैफई में नाच करवा रहे थे। मुजफ्फरनगर के पीड़ितों को भिखारी कहने वाले आजम खां को जौहर विश्वविद्यालय के नाम पर सौगात देकर सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों का अखिलेश ने मजाक उड़ाया। संगीत सोम, सुरेश राणा से लेकर पूरे प्रदेश में हुई इस सरकार में रिकार्ड सांप्रदायिक हिंसा में किसी को भी सजा नहीं हुई।
रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि सपा का यह चुनावी घोषणा पत्र नागपुर से बनकर आया है इसीलिए सांप्रदायिकता के विनाश जैसे सवालों को छापने की हिम्मत भी अखिलेश यादव नहीं कर पाए हैं। उन्होंने कहा कि अखिलेश ने पटना की मोदी की रैली में हुए धमाकों के बाद मिर्जापुर, फतेहपुर से तो वहीं मोदी के लखनऊ आने पर आईएस के नाम पर लखनऊ और कुशीनगर से, अलकायदा के नाम पर संभल जैसे जिलों से मुस्लिम युवकों को सालों जेलों में सड़ाने के लिए केन्द्रिय सुरक्षा एजेंसियों के हवाले कर दिया। कहां तो वादा था बेगुनाहों को रिहा करने का लेकिन जो लोग खुद अदालतों से 8-9 साल बाद बरी हुए उन्हें फिर जेल भिजवाने के लिए सरकार अदालत चली गई। धार्मिक स्वतन्त्रता की बात करने से पहले अखिलेश यादव को बताना चाहिए कि लव जेहाद के नाम पर उनकी सरकार में मुस्लिम युवाओं पर हमले किए गए और भड़काऊ भाषण देकर साक्षी महराज, योगी आदित्यनाथ जैसे भाजपा सांसद समाज में आग लगाते रहे और उनपर उन्होंने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।
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