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Sunday, 29 January 2017

SP-BSP-BJP नहीं कर सकते हैं वोटों का साम्प्रादायिक सौदा, 200 सीटों पर चुनाव लड़ेगा परिवर्तन मोर्चा

(प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते राजेंदर सच्चर)
लखनऊ से खबरची. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भाजपा के लिए बुरी खबर है। यूपी में साम्प्रदायिक राजनीति की पोल खोलने कुछ दलों का एक मोर्चा मैदान में उतर रहा है। सांप्रदायिक ताकतों से निपटने के लिए यूपी विधानसभा चुनाव में मोर्चे के उम्मीदवार दो सौ सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। यह घोषणा सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के संरक्षक और पूर्व न्यायाधीश राजिन्दर सच्चर ने की। रविवार को लखनऊ के प्रेस क्लब में उन्होंने कहा, "हमारा मकसद यूपी की जनता को नया और ठोस राजनीतिक विकल्प देना है।"

क्या है मोर्चे का मकसद 
परिवर्तन मोर्चा की घोषणा करते हुए राजिन्दर सच्चर ने कहा, उनके द्वारा अल्पसंख्यक वर्ग के विकास पर जो सिफारिशें की गईं उसे आज तक किसी राजनीतिक दल ने लागू नहीं किया। यूपी में सपा ने कई वादे किए बावजूद, लागू करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसबार तो अल्पसंख्यकों से जुड़ा मुद्दा उनके घोषणापत्र से ही गायब है। सच्चर ने कहा, सोशलिस्ट पार्टी वंचित समाज के विकास के एजेंडे के साथ चुनाव में परिवर्तन मोर्चा के रूप में मैदान में उतरी है।

मोर्चे के अहम मुद्दे
1) समान शिक्षा प्रणाली, गरीबों को आवास मुहैया कराना
2) मजदूरों, मजलूमों, किसानों, नौजवानों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलित-आदिवासी वर्ग के शिक्षा, रोजगार, किसानी जैसे मुद्दों पर सवाल उठाकर उचित हक़ दिलाना

मोर्चे में कौन-कौन दल शामिल हैं 
सच्चर ने कहा, मोर्चे में सोशलिस्ट पाटी (इंडिया), नेलोपा, भारतीय कृषक दल, जनहित विकास पार्टी, जनवादी समता पार्टी के उम्मीदवार 200 सौ सीटों चुनाव लड़ेंगे।

मुलायम ने नहीं दिया था मिलने का वक्त
सच्चर ने कहा, मुजफ्फरनगर दंगों के सवाल पर जब मैंने कुलदीप नैयर और अन्य लोगों ने मिलकर मुलायम सिंह जी को पत्र लिख वहां के हालात पर चिंता जाहिर की और मिलने का वक्त मांगा; उन्होंने समय तक नहीं दिया। साम्प्रदायिकता जैसे बड़े खतरे पर अपने को लोहियावादी बताने वालों से यह उम्मीद नहीं थी। सच्चर ने आगे कहा, "बाबरी मस्ज्दि जैसी घटना के बाद होना तो यह चाहिए था कि 6 दिसम्बर को पूरा देश ‘पश्चाताप दिवस’ मनाए, लेकिन फासीवाद के खिलाफ समझौतावादी संघर्ष के कारण आज आजाद भारत की सबसे शर्मनाक घटना को अंजाम देने वाले लोग ही सत्ता में काबिज हो गए हैं।

कैसे हैं ये लोहिया के वारिस : संदीप 
मैगससे पुरस्कार से सम्मानित सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संदीप पाण्डेय ने कहा, "लोहिया शराब के विरोधी थे, लेकिन खुद को लोहिया का वारिस बताने वाली सपा सरकार शराब का दाम कम करके यूपी को दूसरा पंजाब बनाने पर तुली है। इसी तरह लोहिया ने नारा दिया था कि समाजवाद में रानी और मेहतरानी के बच्चे एक स्कूल में पढ़ेंगे, लेकिन सपा सरकार के विधायक और मंत्री शिक्षा माफिया बन गए हैं। अच्छे दिनों का वादा करके सत्ता में आई भाजपा ने नोटबंदी करके कितने ही गरीबों को रोड पर ही लाइन लगवाकर मार डाला।

संदीप पांडे ने कहा इसलिए बनाया मोर्चा 
संदीप पांडे ने कहा, बसपा का चरित्र देखकर यह भरोसा नहीं किया जा सकता कि वह किस क्षण भाजपा के साथ हाथ मिला ले। ऐसे में परिवर्तन मोर्चा यूपी में साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले इन तीनों दलों की नीतियों के खिलाफ ईमानदार और सेक्युलर उम्मीदवारों के जरिए जनता को वास्तविक समाजवादी विकल्प देगा। इसको विभिन्न वर्गों के सामाजिक संगठनों और आंदोलनों का समर्थन प्राप्त है।

रिहाई मंच ने भी किया मोर्चे को सपोर्ट 
आतंकवाद के नाम पर जेलों में बंद मुसलमान युवकों की रिहाई का मुद्दा उठाने वाले मो. शोएब ने भी मोर्चे का समर्थन किया। उन्होंने कहा, परिवर्तन मोर्चा को चुनाव के दौरान रिहाई मंच का पूरा समर्थन मिलेगा। देश में पैदा हो रहे संवैधानिक संकट से निपटने के लिए तमाम आंदोलनों को ऐसे परिवर्तनकामी ताकतों के साथ खड़ा होना ही पड़ेगा।

ठगे गए किसान : कृषक दल 
भारतीय कृषक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरोज दीक्षित ने कहा, किसानों को इन पार्टियों ने भिखारी बना दिया है जिससे चुनाव में कुछ वादे करके हर पार्टी वोट ले लेती है और किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है। परिवर्तन मोर्चा किसानों को राजनीतिक भागीदारी देगा और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करेगा। हर गांव में सामुदायिक कृषि विकास केंद्र खुलवाए जाएंगे जहां कम लागत मूल्य आधारित खेती के लिए प्रशिक्षण एंव बाजार की जरूरतों के हिसाब से फसल चुनने में कृषि विशेषज्ञों की मदद उपलब्ध करा कर खेती किसानी को लाभकारी बनाने की दिशा में काम करेंगे। जनवादी समता पार्टी के प्रतिनिधि विनोद यादव ने कहा, परिवर्तन मोर्चा चुनाव में सपा, बसपा और भाजपा की एक जैसी गरीब विरोधी नीतियों से उपजे जनविक्षोभ की ताकत पर चुनाव लड़ा जा रहा है। प्रेस वार्ता में शामिल नेलोपा के प्रतिनिधि शम्स तबरेज ने कहा, हम हक-हुकूक और इंसाफ के सवाल पर परिवर्तन मोर्चे के साथ चुनाव में हैं। 

Tuesday, 24 January 2017

JNU में नजीब के लिए आंदोलन से बौखलाई संघी सरकार, निशाने पर बहुजन छात्र-छात्राएं

(जेनयू से गायब हुआ छात्र नजीब: फ़ाइल फोटो  )

लखनऊ से खबरची. रिहाई मंच ने जेएनयू में चल रहे छात्र आंदोलन का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि केंद्र सरकार अपनी नीतियों से जेएनयू के लोकतांत्रिक पहचान को मिटाने पर आमादा है। वे नहीं चाहते कि जेएनयू में दलित, पिछड़ें, अल्पसंख्यक और आदिवासी छात्र-छात्राओं का प्रवेश हो। रिहाई मंच के मुताबिक़ शातिर तरीके से मौखिक परीक्षा के आधार पर प्रवेश देने की रणनीति बनाई जा रही है। रिहाई मंच ने छत्तीसगढ़ में मानवाधिकार कार्यकर्त्ता बेला भाटिया के घर पर पुलिस संरक्षण में असामाजिक तत्वों द्वारा किये गए हमले की भी निंदा की है। रिहाई मंच ने एक बार फिर नजीब का मसाला उठाते हुए आरोप लगाया कि जानबूझकर सरकार नजीब के मामले में कोई ठोस पहल नहेने कर रही है। इस वजह से पीड़ित परिवार को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।




जेएनयू आंदोलन का समर्थन 
रिहाई मंच लखनऊ के प्रवक्ता अनिल यादव ने जेएनयू में चल रहे आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा, "मोदी सरकार मनुवाद के खिलाफ उठाने वाली हर आवाज को दबा देना चाहती है। जेएनयू में जिस तरीके से दलित -पिछड़े, अल्पसंख्यक और आदिवासी छात्र -छात्राओं को मौखिक परीक्षा में बेदखल करने की संघी रणनीति बनाई जा रही है उससे साफ़ होता है की नजीब के लिए चल रहे आंदोलन से बौखलाई सरकार बहुजन छात्र -छात्राओं को निशाना बना रही है।" उन्होंने कहा सोमवार देर रात जिस तरीके से दिल्ली पुलिस भूख हड़ताल पर बैठे छात्रनेता दिलीप यादव को कैम्पस से उठाकर ले गई, उससे साफ़ है कि जेएनयू के संघी कुलपति किसी भी हालात में सामजिक न्याय के आंदोलन का गला दबाना चाहतें हैं।

छत्तीसगढ़ में मानवाधिकार बेला भाटिया के घर पर जिस तरह से पुलिस के संरक्षण में गुंडों ने हमला किया उससे साफ़ होता है कि भाजपा शासित राज्यों में किस तरह से लोकतान्त्रिक और मानवाधिकार के लिए उठाने वाली आवाज़ को कुचला जा रहा है।

Sunday, 22 January 2017

नागपुर से बनकर आया है अखिलेश का घोषणापत्र, संघ की दूसरी टीम है सपा

(दोस्त मोदी के साथ गुरुमंत्र लेते अखिलेश)
लखनऊ से खबरची। रिहाई मंच ने समाजवादी पार्टी के 2017 के चुनावी घोषणा-पत्र में मुसलमानों के मुद्दों से अखिलेश यादव पर पीछे हटने का आरोप लगाया है। मंच ने आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाहों को छोड़ने व उनके पुर्नवास-मुआवजा, सच्चर-रंगनाथ आयोगों की रिपोर्टों पर सांप्रदायिक जेहनियत के तहत अमल न कर पाने वाले अखिलेश यादव से पूछा हैे कि यह मुद्दे इस बार गायब क्यों है। सिर्फ चुनावी घोषणा-पत्र से गायब कर देने मात्र से सवाल गायब नहीं होंगे जनता चुनावों में इसका हिसाब मांगेगी।  

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि अखिलेश यादव को यह भ्रम है कि वह आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मौलाना खालिद मुजाहिद, जियाउल हक, दादरी में अखलाक की हत्या, मुजफ्फरनगर, कोसीकलां, फैजाबाद, अस्थान में दंगे करवाते रहेंगे और मुसलमान उन्हें विकास के नाम पर वोट दे देगा। इस घोषणापत्र में अल्पसंख्यकोें की सुरक्षा व धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के वादे पर रिहाई मंच अध्यक्ष ने पूछा कि जब पुलिस की हिरासत में ही मौलाना खालिद मुलाहिद की हत्या कर दी जाती हो और अखिलेश उसको स्वाभाविक मौत बताते हों या अखलाक को घर से खींचकर भाजपा के लोग  मार डालते हों और सरकार हत्यारों को बचाने के लिए सीबीआई जांच नहीं करवाती और हत्यारे को तिरंगे में लपेटा जाता हो, जिनकी सरकार में रघुराज प्रताप सिंह जैसे गुण्डों को मंत्री बनाकर ईमानदार पुलिस अधिकारी जियाउल हक की सरेआम हत्या करवा दी जाती हो वह किस मुंह से मुसलमानों की सुरक्षा की बात कर सकते हैं। पूरी दुनिया ने देखा कि मुजफ्फरनगर में मां-बेटियों की अस्मत लूटी जा रही थी, बच्चे ठंड से मर रहे थे और बाप-बेटा सैफई में नाच करवा रहे थे। मुजफ्फरनगर के पीड़ितों को भिखारी कहने वाले आजम खां को जौहर विश्वविद्यालय के नाम पर सौगात देकर सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों का अखिलेश ने मजाक उड़ाया। संगीत सोम, सुरेश राणा से लेकर पूरे प्रदेश में हुई इस सरकार में रिकार्ड सांप्रदायिक हिंसा में किसी को भी सजा नहीं हुई। 




रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि सपा का यह चुनावी घोषणा पत्र नागपुर से बनकर आया है इसीलिए सांप्रदायिकता के विनाश जैसे सवालों को छापने की हिम्मत भी अखिलेश यादव नहीं कर पाए हैं। उन्होंने कहा कि अखिलेश ने पटना की मोदी की रैली में हुए धमाकों के बाद मिर्जापुर, फतेहपुर से तो वहीं मोदी के लखनऊ आने पर आईएस के नाम पर लखनऊ और कुशीनगर से, अलकायदा के नाम पर संभल जैसे जिलों से मुस्लिम युवकों को सालों जेलों में सड़ाने के लिए केन्द्रिय सुरक्षा एजेंसियों के हवाले कर दिया। कहां तो वादा था बेगुनाहों को रिहा करने का लेकिन जो लोग खुद अदालतों से  8-9 साल बाद बरी हुए उन्हें फिर जेल भिजवाने के लिए सरकार अदालत चली गई। धार्मिक स्वतन्त्रता की बात करने से पहले अखिलेश यादव को बताना चाहिए कि लव जेहाद के नाम पर उनकी सरकार में मुस्लिम युवाओं पर हमले किए गए और भड़काऊ भाषण देकर साक्षी महराज, योगी आदित्यनाथ जैसे भाजपा सांसद समाज में आग लगाते रहे और उनपर उन्होंने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। 

Thursday, 5 January 2017

धोनी के पास कप्तानी छोड़ने के अलावा कोई चारा भी नहीं था, ये वजह नहीं जानते हैं आप? इग्लैंड सीरिज में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को भी कह देंगे अलविदा


महेंद्र सिंह धोनी द्वारा कप्तानी छोड़ देने के फैसले की हर ओर तारीफ़ की जा रही है. लोग यहां तक कह रहे हैं कि उन्होंने सही वक्त पर बहुत दिलेर फैसला लिया है. लेकिन उनके कप्तानी छोड़ने की वजह के पीछे एक सच और है जिस पर इस वक्त बिलकुल भी बात नहीं की जा रही है, हालांकि वह मौजूं बहुत है. दरअसल. इस मसले पर एक सीनियर स्पोर्ट जर्नलिस्ट से मेरी जो बातचीत हुई इसके बाद मैं उनके तर्कों को सिरे से खारिज नहीं कर सकता. - खबरची

सबसे पहले बता दें कि इसके सिरे 2013 के आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामलों से जुड़े हैं. भारतीय क्रिकेट के इस बड़े काण्ड पर अब तक कई की बलि चढ़ चुकी है. मयप्पन को क्रिकेट से बाहर होना पड़ा तो ललित मोदी को देश छोड़कर भागना पड़ा. घोटाले के बाद बीसीसीआई में सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जस्टिस लोढ़ा की अगुआई में एक कमेटी का गठन किया गया. उस कमेटी ने सिफारिशें की. जिन्हें व्यावहारिक तौर पर लागू करने में असमर्थता जताने वाले अनुराग ठाकुर को सर्वोच्च अदालत ने bcci चीफ ली पोस्ट से हटा दिया. उनके साथ सेक्रेटरी शिर्के को भी बाहर जाना पड़ा.
(इंडिया टुडे की वह रिपोर्ट जिसमें मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर धोनी की भूमिका पर उठाए सवाल. रिपोर्ट 2014 की है.)



तो क्या है धोनी के कप्तानी छोड़ने के फैसले की सही वजह ?
लोढ़ा कमेटी की रिपोर्ट में धोनी समेत टीम इंडिया के मौजूदा तीन बड़े क्रिकेटरों का नाम है. सूत्रों की मानें तो उन पर कार्रवाई की अनुशंसा की गई है. अनुराग ठाकुर के हटने के बाद इस मामले में bcci की और किरकिरी न हो इसके लिए बंद कमरे में बतौर कप्तान और खिलाड़ी धोनी की सम्मानजनक विदाई के लिए एक फ़ॉर्मूला निकाला गया है. इसके तहत ही धोनी ने कप्तानी के पद से इस्तीफा दिया. ध्यान देने वाली बात यह है कि उनका इस्तीफा अनुराग पर कार्रवाई के कुछ घंटों बाद आया है. इस बारे में मेरी जिस स्पोर्ट जर्नलिस्ट से बात हुई उनका यहां तक कहना था कि धोनी इग्लैंड के साथ आगामी सीरिज के दौरान एक दिवसीय और टी ट्वेंटी फ़ॉर्मेट से भी संन्यास की घोषणा कर देंगे.


(मुद्गल कमेटी के रिपोर्ट की कॉपी : इस तरह हुआ धोनी के नाम का जिक्र.)

मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर इंडिया टुडे ने भी किया था खुलासा 
इससे पहले 2014 में इंडिया टुडे ने आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामलों की जांच के लिए गठित पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस जस्टिस मुकुल मुद्गल की रिपोर्ट के आधार पर एक एक्सक्लूसिव स्टोरी में धोनी समेत कुछ खिलाड़ियों के दोषी पाए जाने का उल्लेख किया था. कमेटी ने अपनी जांच में राजस्थान रॉयल्स और चेन्नई सुपरकिंग के बीच फिक्स हुए के मैच के लिए छह प्रमुख भारतीय खिलाड़ियों के नाम का जिक्र किया था. इसमें सबसे अहम नाम चेन्नई सुपर किंग के खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी और सुरेश रैना का था. रिपोर्ट में कमेटी ने दोनों को क्लीन चिट तो नहीं दी पर भूमिका पर सवाल जरूर उठाए थे। जस्टिस मुकुल को बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष आई एस बिंद्रा ने भी बताया था कि वह उन दो पूर्व प्रतिष्ठित भारतीय खिलाड़ियों को जानते हैं जो कथित तौर पर मैच फिक्सिंग में शामिल थे। मुदगल की रिपोर्ट में इनके नाम का बाकायदे जिक्र है. जस्टिस मुद्गल ने अपनी रिपोर्ट में किसी को क्लीन चिट नहीं दी और आगे की जांच के हाजिर होने की बात कही।
(मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट की कॉपी : इस तरह हुआ धोनी के नाम का जिक्र.)

Wednesday, 4 January 2017

लोकतंत्र के लिए खतरनाक है पर्सनालिटी चुनाव: मुसलमानों में कन्फ्यूजन से सपा को नुकसान, पर गांवों का गुस्सा बीजेपी के खिलाफ, किसी को बहुमत नहीं



उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव का विगुल बज गया है. यूपी की 403 विधानसभा सीटों के नतीजे 11 मार्च को आ जाएंगे. चुनाव के मद्देनजर 'खबरची' यूपी में ग्राउंड लेवल पर काम करने वालों के साथ एक इंटरव्यू सीरिज शुरू कर रहा है. आज की पहली कड़ी में बातचीत शाहनवाज आलम के साथ. शाहनवाज, सोशियो-पॉलिटिकल कार्यकर्ता और जर्नलिस्ट हैं. वे यूपी में घूम-घूमकर सोशियो-पॉलिटिकल हालात का जायजा लेने के साथ जरूरी सवालों पर सरकार और प्रशासन से दो-दो हाथ करते रहते हैं. पूरी बातचीत में उन्होंने उन तमाम बदलाव की ओर इशारा किया जो यूपी की सियासत में पहली बार हो रहा है. किन्हीं वजहों से बातचीत का रिकॉर्ड सेव नहीं हो सका. अगली कड़ियों में रेकॉर्डेड बातचीत प्रस्तुत की जाएगी ताकि पूरी बात सुनी जा सके. - खबरची 
(शाहनवाज आलम)

"चुनाव में पार्लियामेंट्री सिस्टम का अहम पहलू धीरे-धीरे ख़त्म किया जा रहा है. यह बेहद खतरनाक है. लोकसभा चुनाव के बाद यह पहली बार यूपी के असेंबली इलेक्शन में आजमाया जा रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मोदी को लेकर यही किया था. मोदी का कैम्पेन अमरीकी चुनाव से भी महंगा साबित हुआ. अब यूपी में अखिलेश यादव भी वही कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी (फूट के बाद की स्थितियां नहीं) के यूपी में जो पोस्टर दिख रहे हैं उनमें सिर्फ अखिलेश का ही चेहरा नजर आ रहा है. सम्बंधित विभागों के दूसरे मंत्री- विधायकों पार्टी पदाधिकारियों के चेहरे गायब हो रहे हैं. जैसे यह भी देखने में आ रहा है कि भाजपा के सांसद नरेन्द्र मोदी से बात नहीं कर पा रहे हैं या अपनी बात नहीं पहुंचा पा रहे हैं. जबकि ये पार्लियामेंट्री सिस्टम में लॉ मेकर हैं, पर फिलहाल पूरे सीन से गायब. लोकतंत्र के लिए यह खतरनाक है."

नीचे से ऊपर तक ख़त्म होता जा रहा संवाद घातक 

"तमिलनाडु और ओडिशा के पैटर्न पर राजनीति फॉलो की जा रही है. इस प्रैक्टिस में जनता का सीधा प्रतिनिधित्व कम होता जाता है. क्योंकि नीचे से ऊपर तक का संवाद द्विपक्षीय नहीं रह पाता. जैसा कि यूपी में अखिलेश या जो भी दूसरे चेहरे (भाजपा की ओर से मोदी) गढ़े जा रहे हैं वह खतरनाक है.

दो धारणाओं का संघर्ष ; 
"जो भी रूलिंग सरकारें हैं वे वन लीडर पॉलिसी पर केंद्रित है. लेकिन जनता क्या सोचती है. दरअसल, जनता ऐसा नहीं चाहती हैं. ये कंट्राडिक्शन है जो नजर आता है. चुनाव लड़ने के लिए एक चेहरा निर्धारित किया जाता है और घोषणापत्र भी जारी किए जाते हैं. यह बिलकुल दो धारणाओं में संघर्ष है. चुनावी मशीनरी को अलग तरीके से ढाला जा रहा है."

"यूपी के मौजूदा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा मुसलामानों पर केंद्रित किया जा रहा है. यह पार्टियों की कोशिशों में नजर भी आता है. चुनाव से ठीक पहले मुसलामानों को लुभाने के लिए सपा ने दो बुकलेट जारी किया है. बसपा भी पीछे नहीं है. उसने भी एक बुकलेट जारी किया. लेकिन असल बात का किसी के पास समाधान नहीं है. पिछली सरकार में बसपा थी और पांच साल से सपा की सरकार है. मुसलामानों का मुद्दा आज भी वहीं का वहीं है. सच्चर कमेटी कमेटी की सिफारिशें, आतंकवाद के नाम पर बेगुनाओं की रिहाई का मसला, बुनकरों का मुद्दा तो वहीं का वहीं पड़ा हुआ है. इसी तरह किसानों, मजदूरों का मुद्दा वहीं का वहीं है."

जवाबदेही कम हो रही है पर चुनाव में सवाल वही 
"कुल मिलाकर इस चुनाव में भी मुद्दे सालों पुराने ही हैं. नए मुद्दे नहीं हैं. सरकारे बदल रही हैं पर जनता वही है. अबतक जो दिखा है वह सिर्फ सरकारों का विकास. कॉर्पोरेट पूजी के साथ यह लोकतांत्रिक सरकारों का नया दौर है. लोकतांत्रिक कंट्राडिक्शन साफ़ दिख रहा है. बड़े-बड़े दंगे यूपी में हुए. ज्यादातर मुसलानों के खिलाफ. लेकिन यूपी में दंगों को लेकर कोई कमेटी तक नहीं बनाई गई, जांच नहीं की गई. किसकी जवाबदेही थी. व्यक्तिकेंद्रित सिस्टम में जवाबदेही कम हो रही है."
(कुछ सर्वे में भाजपा को 139 सीटें मिलती दिख रही है. पिछले चुनाव में भाजपा को सिर्फ 47 सीटें मिली थीं.)


सपाई झगड़े का नुक्सान भाजपा को लेकिन गांवों में भाजपा के खिलाफ गुस्सा 
"आम लोगों में ओपिनियन पोल को लेकर कोई विश्वसनीयता नहीं है. आम लोग इसे वायस्ड मानते हैं. समाजवादी पार्टी में टूट होती है तो यूपी चुनाव में भाजपा को उसका फ़ायदा मिलेगा. 2007 में बसपा को लेकर तमाम पोल धराशायी हो गए. पोल हमेशा शहर केंद्रित होता है. गांवों में सरकार जनित समस्याएँ हैं. नोटबंदी को ही ले लीजिए. इसका खामियाजा गांवों में दिखा है शहरों में उतना नहीं. हाँ, शहरी मध्य वर्ग में बीजेपी को लेकर एक आकर्षण है. सपा लड़ाई से बाहर है."

इस चुनाव में आने वाले दिनों का नया समीकरण 
"बहुमत नहीं मिलेगा. सपा के झगड़े से मुसलामानों में कन्फ्यूजन की स्थिति रहेगी. मुसलमान पॉलिसी माइंड सेट के साथ वोट नहीं करता. वह बसपा की तरफ शिफ्ट हो सकता है. झगड़ा सुलझने का अब वक्त भी नहीं है, सपा को बहुत नुकसान होगा. लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि किसकी सरकार बनेगी? बीजेपी के खिलाफ गांवों में काफी गुस्सा है. दलित-मुसलमान का कॉम्बिनेशन नए तरीके से बनेगा. ये चुनाव आने वाले दिनों में नया समीकरण प्रस्तुत करेगा.