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Friday 3 January 2014

छवि बदलने को परेशान मुलायम

- अनुज शुक्ला मुजफ्फरनगर में राहत कैंपों में रह रहे दंगा पीड़ितों को लेकर नेताजी मुलायम सिंह यादव ने जो बयान दिया है वैसा बयान वे आमतौर पर नहीं देते हैं। बता दें कि हाल ही में राहुल गांधी द्वारा मुजफ्फरनगर के राहत कैंपों का दौरा करने व पीड़ितों के तमाम सवाल उठाने के बाद फौरी प्रतिक्रिया में नेताजी ने दावा कर दिया कि राहत कैंपों में एक भी दंगा पीड़ित नहीं रह रहा है। उनका मानना है कि वहाँ रह रहे लोग भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं जो बिना वजह मामले को जिंदा रखना चाहते हैं। नेताजी का मानना है कि उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार को बदनाम करने की साजिश के कारण ऐसा किया जा रहा है। राजनीति पर नजर रखे जानकारों के मुताबिक मुजफ्फरनगर सहित राज्य भर में एक पर एक हुए सांप्रदायिक हिंसाओं के चलते आलोचनाओं की जद में आई यूपी सरकार की भूमिका को लेकर राहुल गांधी के हालिया कदम के कारण सपा मुखिया का उक्त बयान, झुंझलाहट में दिया गया बयान है। लेकिन क्या वाकई यह झुंझलाहट में दिया गया बयान भर माना जाए या इसके दूसरे राजनीतिक मायने भी निकलते हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश की जो नई सियासी तस्वीर सामने आ रही है उसमें नेताजी के मौजूदा बयान के दूसरे अभिप्राय भी निकलते हैं। इसे यूपी की नई राजनीति में लोकप्रिय हो रहे नर्म हिंदुत्व की सियासत के साथ जोड़कर भी देखा जा सकता हैं। मुसलमानों को लेकर नेताजी की जो छवि बनी है वे उसे बदलने की कोशिश कर रहे हैं। इस क्रम में पहले कारसेवकों पर गोली चलवाने के आदेश पर माफी माँग लेने के बाद की कड़ी में नेताजी के उक्त बयान को लिया जा सकता है। दरअसल, 2014 को लेकर नरेन्द्रभाई मोदी के अभियान से यूपी के सियासी हालात बहुत दिलचस्प हुए हैं। उधर, कभी-कभार उठने वाली तीसरे मोर्चे की चर्चाओं में अक्सर मुलायम सिंह यादव का नाम भी प्रधानमंत्री के रूप में सामने आ जाता है। यूपी में राजनीतिक टकराव की जो तस्वीर बन रही है उसमें 14 के मुकाबले के लिए नरेंद्रभाई मोदी और मुलायम सिंह में एक अपरोक्ष मुक़ाबला भी देखा जा रहा है। खास बात यह है कि दोनों के बीच राजनीतिक संघर्ष का केंद्र पिछड़े मत ही हैं। यह अनायाश नहीं है कि प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा की ओर से मोदी की उम्मीदवारी तय होने के बाद देशभर में हिंदुत्व के फायर ब्रांड नेता के तौर पर स्थापित उनकी छवि को अचानक बदलकर चाय बेचने वाला या पिछड़ी जाति के नेता के तौर पर स्थापित किया जा रहा है। इसमें कुछ अराजक बुद्धिजीवी भी शामिल हैं जो नर्मदा बांध पर सरदार पटेल की प्रतिमा निर्माण के उदाहरण के बहाने मोदी को पिछड़ा नेता घोषित करने पर तुले हुए हैं। मोदी के अभियान में सबसे बड़ा रोड़ा यूपी है। यूपी में ज्यादा से ज्यादा सीटें हथियाने के लिए भाजपा को अपने परंपरागत वोट बैंक को मजबूत करने के साथ ही पिछड़ों के मतों में सेंध लगाना होगा। बहरहाल यूपी में अमित शाह की तैनाती के बाद मोदी को लेकर सवर्णों के बाद पिछड़ी जाति में भी एक हलचल तो जरूर हुई है। हाल ही में नरेन्द्रभाई मोदी के कारण यूपी के दर्जनभर सपा नेताओं ने पार्टी के संसदीय चुनाव के टिकट लौटा दिए। यूपी के पिछड़ों में “मोदी मीनिया” की जुजूप्सा को नेताजी के परेशानी का सबब माना जा सकता है। उधर, पिछले कुछ महीनों के दौरान राज्य में हुए दंगों के कारण जिस तरीके मुसलमान सपा से बिदका है, उस स्थिति में मुसलमानों द्वारा सपा के विकल्प के रूप में कांग्रेस या फिर बहुजन समाज पार्टी की ओर जाने की संभावनाएँ ज्यादा बढ़ी हैं। अगर 2014 के चुनाव को लेकर यूपी में ऐसा होता है तो निश्चित ही मुलायम सिंह 14 के संघर्ष में सबसे कमजोर मोहरे साबित होने वाले हैं। जाहिर है कि पिछड़ों में नरेंद्र मोदी को लेकर उठे नर्म हिंदुत्व के रुझान के कारण नेताजी भी इसे ट्रंफ के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि अपनी इस नई छवि के साथ नेताजी पिछड़ों को पार्टी के साथ जोड़े रख सकें। उल्लेखनीय है कि सपा सरकार उन तमाम मुद्दों को जो सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील हैं, उन्हें उठाने से बच रही है। हालांकि विधानसभा के चुनाव में सपा सरकार ने बाक़ायदा इन्हें अपने घोषणापत्र में शामिल करते हुए सरकार बनते ही वादे पूरे करने का आश्वासन दिया था। सपा सरकार की वादा खिलाफी को लेकर राज्य के अल्पसंख्यक काफी बिदके हुए हैं बावजूद नर्म हिंदुत्व की मजबूरी के चलते सपा इससे अनजान बने रहना चाहती है। 14 से पहले के चुनाव तक सपा नहीं चाहेगी कि संवेदनशील मुद्दों को लेकर उसे घेरा जाए। खासकर तब जबकि इस बार नरेन्द्रभाई मोदी के रूप में भाजपा पिछड़ी और हिंदुत्व की राजनीतिक चाल चल रही है।

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