अदालती ट्रायल के बाद अब मीडिया और पब्लिक ट्रायल की बारी है। भोपाल गैस कांड पर २४ साल बाद अदालत द्वारा दिए गए मामूली फ़ैसले ने हमारी व्यवस्था की कलई, खोल कर के रख दी। न्यायिक व्यवस्था के साथ कार्यपालिका और विधायिका भी संदेह की जद में आ गए हैं। हम मात्र इस फ़ैसले पर असंतोष व्यक्त नहीं कर सकते क्योकि इस फ़ैसले के पीछे बड़े साजिशकर्त्ता है जिनके उपर उतनी बात नहीं की जा रही है जितनी आवश्यक है। एक रणनीति के तहत कांग्रेस के अंदर सिर्फ़ राजनीतिक वनवास झेल रहे अर्जुन सिंह को निशाना बनाया जा रहा है। दरअसल इस पूरे मामले में अर्जुन सिंह के अलावा भी कयी दिग्गज शख्शियतें है जिनका दामन यूनियन कार्बाईड हादसे के कारण दागदार है। कांग्रेस के अलावा भाजपा की पूरे मामले पर रहस्यमय हथकंडा काबिलेगौर है।
वे क्या कारण थे कि तत्कालिन मुख्य न्यायधीश(सर्वोच्च न्यायालय) अहमदी ने इस मामले पर कम से कम सजा का प्रावधान किया। अहमदी की भूमिका पर भी सवाल उठाना चाहिए। भोपाल मामले में अर्जुन सिंह राजीव गांधी के बाद राजग सरकार और अहमदी कम जिम्मेदार नहीं। कबिलेगौर है कि अहमदी एडरसन की कंपनी के चैरिटी ट्रस्ट के सदस्य हैं। और इन्ही अहमदी की वजह से अदालत दोषियों को कम से कम सजा देने को वाध्य हुई। अहमदी की संदेहास्पद भूमिका कयी तथ्यों पर से पर्दा उठाने के लिए काफ़ी है।
भाजपा इस मामले पर चाहकर भी कोई लीड लेने की स्थिति में नहीं है कारण साफ़ है भाजपा ने भी एंडरसन एंड कंपनी को बचाव के सारे रास्ते मुहैया करवाए। राजग के शासनकाल में इसकी पटकथा लिखी गयी। कोई न्याय करे या न करे पर देश की सबसे बड़ी जनता की अदालत में इस मामले पर न्याय किया जाएगा। आज सभी एक स्वर में दोषियों को कठोर सजा देने के साथ ही मामले को प्रभावित करने वाले कारकों को उजागर करने की बात कर रहे हैं। भोपाल गैस कांड के पीडितों के प्रति यही सच्ची सहानुभूति होगी।
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