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Thursday 26 September 2019

नेटफ्लिक्स के जंगल में रक्खोश भी है, मौका मिले तो देखें क्यों जरूरी है ये फिल्म

अनुज शुक्ला/मुंबई

रक्खोश। नेटफ्लिक्स के जंगल में फिल्में ढूढ़ते ढूंढ़ते यूं ही मिल गई थी। वैसे ही जैसे सरेराह चलते- चलते कोई यूं ही मिल जाता है। नाम कुछ अजीबोगरीब किस्म का है और पोस्टर पर संजय मिश्रा का चेहरा। यह भी लिखा नजर आया कि ये भारत की पहली POV फिल्म है। लगा चलो जब मिला है तो देख लेते हैं।

ये एक डार्क हॉरर ड्रामा है। इसे first person perspective शूट किया गया है। यानी आपको पूरी फिल्म एक व्यक्ति के जरिए दिखाई जाती है। एक तरह से वो व्यक्ति, वो नैरेटर या कैमरा ही कह लें; फिल्म का असली हीरो है। फिल्म की कहानी दो टाइम लाइन पर है जो एक जगह आपस में मिल जाती हैं। कहानी कुमार जॉन (संजय मिश्रा) और बिरसा (नमित दास) की है। कहानी एक मेंटल हॉस्पिटल और उसमें भर्ती विक्षिप्त लोगों की है।

रक्खोश  दरअसल एक सुपर नेचुरल पावर है जो अस्पताल में हर दिन एक पेशेंट को मार देती है। कुमार और बिरसा मिलकर उसे ढूंढ़ रहे हैं। वो कैसे ढूंढते हैं, क्या करते हैं इस दौरान और इससे पहले अस्पताल में क्या चल रहा होता है इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। रक्खोस में मेंटल हॉस्पिटल की खराब हालत, घरों में कैसे मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के साथ दुरव्यवहार होता है देख सकते हैं। फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत चुस्त दुरुस्त है। अंत तक कहानी में दिलचस्पी बनी रहती है।

लेकिन सबसे ज्यादा तारीफ करनी चाहिए फिल्म के कैमरा वर्क, सिनेमेटोग्राफी और एडिटिंग की। फिल्म के कई विजुअल देखते ही रहने को प्रेरित करता है। जब आप फिल्म में कैमरा एंगल और रियलिस्टिक बैक्राउंड वाले फ्रेम देखेंगे तो वाह वाह कर उठेंगे। कई सीक्वेंस एक्सट्रीम रियलिज्म लिए हुए बहुत डरावने बन पड़े हैं। फिल्म में कई चीजें सतही भी हैं। सुपरनैचुरल पावर से जुड़े कई सवाल अंत तक बिना जवाब के रह जाते हैं।

वैसे संजय मिश्रा के साथ नमित दास, तनिष्ठा चटर्जी और प्रियंका बोस जैसे एक्टर्स का काम कमाल का है। फिल्म में कई चीजें अच्छी हैं और कुछ लाजवाब चीजों के लिए खराब चीजें नजरअंदाज करने में कोई बुराई नहीं है। अभिजीत कोकटे और श्रीविनय सलियन के निर्देशन, अलग तरह की फिल्म मेकिंग में बनी रक्खोश को देख सकते हैं। डार्क, हॉरर और साइको ड्रामा देखने का शौक है तो कहने ही क्या। नेटफ्लिक्स को शुक्रिया बोलिए और इसे देख लीजिए।

अनुज शुक्ला

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