अनुज शुक्ला/मुंबई. इस साल सितंबर तक कई वेब सीरीज आ चुकी हैं, कई कतार में भी हैं। लेकिन इस साल सबसे ज्यादा इंतजार रहा सैक्रेड गेम्स के दूसरे सीजन का।
कुल मिलाकर देखें तो सितंबर में अब तक कोई एक ऐसी वेब सीरीज नहीं आ पाई है जिसे हर वर्ग का दर्शक पसंद करे। इस साल मास ऑडियंस के लिए कोई इंगेजिंग वेब सीरीज देखने को नहीं मिली। हालांकि इसी मेड इन हैवेन, लैला और सैक्रेड गेम्स का डूसरा सीजन काफी वजनदार और शानदार रहा। मगर ये अपनी बनावट में एक ख़ास दर्शक वर्ग तक ही संवाद कर पाईं। एक तरह से दीपा मेहता के क्रिएशन में लैला भारत में एक प्रयोग की तरह भी था जो वक्त से बहुत आगे जाकर सामाजिक - राजनीतिक पहलुओं पर बात कर रही थी। वहीं सैक्रेड गेम्स 2 अपनी दार्शनिक गूढ़ताओ की वज़ह से आम दर्शक से बेहतर संवाद करने में नाकाम रही।
लेकिन सितंबर में एक अच्छी बात ये हुई कि अमेज़न प्राइम पर द फैमिली मैन आ गई। ये मनोज बाजपेई का डिजिटल डेब्यू भी है। ये सीरीज इस साल आई बेहतरीन सीरीज के मुकाबले अपने कथानक और प्रस्तुति में हिंदी पट्टी के व्यापक दर्शक वर्ग तक संवाद करने और अपने कंटेंट के साथ उन्हें इंगेज करने में समर्थ है।
द फैमिली मैन की कहानी एनआईए के अफसर श्रीकांत तिवारी उसके परिवार, उसकी टीम उसके संस्थान के ऑपरेशन्स के इर्द गिर्द है। कुल मिलाकर ऐसे समझिए कि मुंबई में ए
क आतंकी ब्लास्ट के बाद श्रीकांत को इस्लामिक स्टेट, आईएसआई और पाकिस्तान की सेना से जुड़ी बड़ी लीड मिलती है। आतंकी भारत में एक बड़ा मिशन प्लान कर रहे हैं। श्रीकांत और उसकी टीम उस मिशन को डिकोड करने में जुटी है। इस बीच श्रीकांत की अपनी लाइफ में भी तमाम चीजें हैं जहां उसे जूझना पड़ रहा है। बच्चों की अपनी जरूरतें, पत्नी की अपनी चिंताएं और भविष्य को लेकर श्रीकांत का अपना डर। पत्नी सुचित्रा (प्रियमणि) को लेकर उसके दिमाग के एक कोने में शक भी है। सीरीज में यही सब बहुत ही शानदार ढंग से दिखाया गया है। कैसे श्रीकांत तिवारी पत्नी से झूठ बोलकर जानलेवा ऑपरेशन्स में शामिल होता रहता है। कैसे वो मिशन से जुड़े एक पहलू को खोजता, गलतियां करता साजिश को डिकोड कर लेता है। सीरीज में गुजरात दंगों के बाद का बंटवारा, कश्मीर के हालात, मोब लिंचिंग जैसे घृणास्पद अपराध से लेकर खातों में 15 लाख देने के राजनीतिक वादों तक का दिलचस्प जिक्र है।
सीरीज में एक दो सीन बेहद शानदार बन पड़े हैं जो आपको कसकर जकड़ कर रखते हैं। कुछ दृश्यों की अर्थवत्ता बहुत व्यापक और कमाल की है। सीरीज कैसी है इसे इन दो सीक्वेंस से समझ सकते हैं। एक - जब श्रीकांत के घर में कोई नहीं रहता तब उसका छोटा बेटा अथर्व पिता की गन पा जाता है। वो जितनी देर गन के साथ खेलता है, ऑडियंस की सांसे थम जाती हैं। तमाम ख्याल दिमाग में नाचने लगते हैं और लगता है कि अगले ही पल अथर्व गन से खुद को शूट कर लेगा। कमाल का सीक्वेंस बन पड़ा है ये। इसके लिए निर्देशक और चाइल्ड आर्टिस्ट अथर्व सिन्हा की जमकर तारीफ की जानी चाहिए।
ऐसे ही एक दूसरे सीक्वेंस का जिक्र करना भी जरूरी है जब लोनावाला में काम के सिलसिले में गई श्रीकांत की पत्नी सुचित्रा को अपने कलीग अरविंद (शरद केलकर) के साथ होटल के एक कमरे में रात गुजारनी पड़ती है। इस सीक्वेंस को इतना खूबसूरत फिल्माया गया है कि आप सीरीज खत्म कर यह तय नहीं कर पाते कि होटल के उस कमरे में आखिर हुआ क्या?
श्रीकांत और किशोर हो रही उसकी बेटी धृति, छोटे बेटे अथर्व के साथ बातचीत वाले कई सीक्वेंस बहुत मजेदार है। पति -पत्नी की नोक झोक और श्रीकांत का अपने कलीग जेके तलपड़े (शरीब हाशमी) के साथ बातचीत वाले तमाम दृश्य बेजोड़ है।
गालियों को छोड़ दें तो ये एक घरेलू वेब सीरीज है जिसे परिवार एक साथ बैठ कर देख सकता है। वैसे भी इसमें उतनी ही गालियां हैं जितनी हम सड़कों पर अक्सर सुनते ही रहते हैं। गालियों का अपना एक समाजशास्त्र है तो बच्चों को उनका मतलब मालूम होना चाहिए।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये सीरीज बेहद ही शानदार है और इसमें सबकुछ अच्छा ही अच्छा है। द फैमिली मैन की सबसे अच्छी बातों में उसकी कहानी, संवाद, तमाम एक्टर्स की अदायगी है। कहानी में हुक भी बहुत लाजवाब हैं जो आगे देखने के लिए उकसाते हैं। खामियों की बात करें तो कश्मीर और वहां के हालात को बहुत सतही तौर पर छूने की कोशिश की गई है। और होता यह है कि कश्मीर पर सीरीज में कोई स्थापना साफ नहीं होती। समझ ही नहीं आता कि आखिर कहना क्या चाहते थे। सीरीज में कई किरदारों की कास्टिंग भी अखरती है। स्क्रीन पर कई कलाकार नकली नजर आते हैं, जो इस सीरीज को औसत बना देते हैं। उनके हाव- भाव, उनका लुक, उनकी संवाद अदायगी सतही है। मिडिल ईस्ट और कश्मीर के टेररिस्ट भी हिंदी पट्टी की शैली में गालियां देते सुनाई देते हैं। मेजर समीर (दर्शन कुमार) किसी भी लिहाज से पाकिस्तानी सेना के अफसर नहीं लगते। फैजान लगता ही नहीं कि वो आईसिस का इतना खूंखार आतंकी है। साजिद के किरदार में शहाब अली प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहे जबकि उनका किरदार कई परतों में था, महत्वपूर्ण था, बहुत गुंजाइश थी उसमें।
फैमिली मैन के लिए याद किए जाएंगे नीरज माधव, शरीब हाशमी
मूसा के किरदार में नीरज माधव, जेके तलपड़े के किरदार में शरीब हाशमी, सुचित्रा के किरदार में प्रियामणि, अथर्व के किरदार में मास्टर वेदांत सिन्हा, धृति के किरदार में
महक ठाकुर लंबे वक्त तक याद किए जाएंगे। नीरज माधव, शबीर और मास्टर वेदांत सिन्हा की तो निकलने वाली है। बाकी मनोज बाजपेई की एक्टिंग तो सीरीज की जान है ही। अन्य कलाकारों का काम भी अपनी जगह ठीक - ठाक है।
क्रिएशन, निर्देशन और स्टोरी के लिए कृष्णा डीके और राज की जमकर तारीफ होनी चाहिए।
आप भी देख सकते हैं, मजा आएगा।
कुल मिलाकर देखें तो सितंबर में अब तक कोई एक ऐसी वेब सीरीज नहीं आ पाई है जिसे हर वर्ग का दर्शक पसंद करे। इस साल मास ऑडियंस के लिए कोई इंगेजिंग वेब सीरीज देखने को नहीं मिली। हालांकि इसी मेड इन हैवेन, लैला और सैक्रेड गेम्स का डूसरा सीजन काफी वजनदार और शानदार रहा। मगर ये अपनी बनावट में एक ख़ास दर्शक वर्ग तक ही संवाद कर पाईं। एक तरह से दीपा मेहता के क्रिएशन में लैला भारत में एक प्रयोग की तरह भी था जो वक्त से बहुत आगे जाकर सामाजिक - राजनीतिक पहलुओं पर बात कर रही थी। वहीं सैक्रेड गेम्स 2 अपनी दार्शनिक गूढ़ताओ की वज़ह से आम दर्शक से बेहतर संवाद करने में नाकाम रही।
लेकिन सितंबर में एक अच्छी बात ये हुई कि अमेज़न प्राइम पर द फैमिली मैन आ गई। ये मनोज बाजपेई का डिजिटल डेब्यू भी है। ये सीरीज इस साल आई बेहतरीन सीरीज के मुकाबले अपने कथानक और प्रस्तुति में हिंदी पट्टी के व्यापक दर्शक वर्ग तक संवाद करने और अपने कंटेंट के साथ उन्हें इंगेज करने में समर्थ है।
द फैमिली मैन की कहानी एनआईए के अफसर श्रीकांत तिवारी उसके परिवार, उसकी टीम उसके संस्थान के ऑपरेशन्स के इर्द गिर्द है। कुल मिलाकर ऐसे समझिए कि मुंबई में ए
क आतंकी ब्लास्ट के बाद श्रीकांत को इस्लामिक स्टेट, आईएसआई और पाकिस्तान की सेना से जुड़ी बड़ी लीड मिलती है। आतंकी भारत में एक बड़ा मिशन प्लान कर रहे हैं। श्रीकांत और उसकी टीम उस मिशन को डिकोड करने में जुटी है। इस बीच श्रीकांत की अपनी लाइफ में भी तमाम चीजें हैं जहां उसे जूझना पड़ रहा है। बच्चों की अपनी जरूरतें, पत्नी की अपनी चिंताएं और भविष्य को लेकर श्रीकांत का अपना डर। पत्नी सुचित्रा (प्रियमणि) को लेकर उसके दिमाग के एक कोने में शक भी है। सीरीज में यही सब बहुत ही शानदार ढंग से दिखाया गया है। कैसे श्रीकांत तिवारी पत्नी से झूठ बोलकर जानलेवा ऑपरेशन्स में शामिल होता रहता है। कैसे वो मिशन से जुड़े एक पहलू को खोजता, गलतियां करता साजिश को डिकोड कर लेता है। सीरीज में गुजरात दंगों के बाद का बंटवारा, कश्मीर के हालात, मोब लिंचिंग जैसे घृणास्पद अपराध से लेकर खातों में 15 लाख देने के राजनीतिक वादों तक का दिलचस्प जिक्र है।
सीरीज में एक दो सीन बेहद शानदार बन पड़े हैं जो आपको कसकर जकड़ कर रखते हैं। कुछ दृश्यों की अर्थवत्ता बहुत व्यापक और कमाल की है। सीरीज कैसी है इसे इन दो सीक्वेंस से समझ सकते हैं। एक - जब श्रीकांत के घर में कोई नहीं रहता तब उसका छोटा बेटा अथर्व पिता की गन पा जाता है। वो जितनी देर गन के साथ खेलता है, ऑडियंस की सांसे थम जाती हैं। तमाम ख्याल दिमाग में नाचने लगते हैं और लगता है कि अगले ही पल अथर्व गन से खुद को शूट कर लेगा। कमाल का सीक्वेंस बन पड़ा है ये। इसके लिए निर्देशक और चाइल्ड आर्टिस्ट अथर्व सिन्हा की जमकर तारीफ की जानी चाहिए।
ऐसे ही एक दूसरे सीक्वेंस का जिक्र करना भी जरूरी है जब लोनावाला में काम के सिलसिले में गई श्रीकांत की पत्नी सुचित्रा को अपने कलीग अरविंद (शरद केलकर) के साथ होटल के एक कमरे में रात गुजारनी पड़ती है। इस सीक्वेंस को इतना खूबसूरत फिल्माया गया है कि आप सीरीज खत्म कर यह तय नहीं कर पाते कि होटल के उस कमरे में आखिर हुआ क्या?
श्रीकांत और किशोर हो रही उसकी बेटी धृति, छोटे बेटे अथर्व के साथ बातचीत वाले कई सीक्वेंस बहुत मजेदार है। पति -पत्नी की नोक झोक और श्रीकांत का अपने कलीग जेके तलपड़े (शरीब हाशमी) के साथ बातचीत वाले तमाम दृश्य बेजोड़ है।
गालियों को छोड़ दें तो ये एक घरेलू वेब सीरीज है जिसे परिवार एक साथ बैठ कर देख सकता है। वैसे भी इसमें उतनी ही गालियां हैं जितनी हम सड़कों पर अक्सर सुनते ही रहते हैं। गालियों का अपना एक समाजशास्त्र है तो बच्चों को उनका मतलब मालूम होना चाहिए।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये सीरीज बेहद ही शानदार है और इसमें सबकुछ अच्छा ही अच्छा है। द फैमिली मैन की सबसे अच्छी बातों में उसकी कहानी, संवाद, तमाम एक्टर्स की अदायगी है। कहानी में हुक भी बहुत लाजवाब हैं जो आगे देखने के लिए उकसाते हैं। खामियों की बात करें तो कश्मीर और वहां के हालात को बहुत सतही तौर पर छूने की कोशिश की गई है। और होता यह है कि कश्मीर पर सीरीज में कोई स्थापना साफ नहीं होती। समझ ही नहीं आता कि आखिर कहना क्या चाहते थे। सीरीज में कई किरदारों की कास्टिंग भी अखरती है। स्क्रीन पर कई कलाकार नकली नजर आते हैं, जो इस सीरीज को औसत बना देते हैं। उनके हाव- भाव, उनका लुक, उनकी संवाद अदायगी सतही है। मिडिल ईस्ट और कश्मीर के टेररिस्ट भी हिंदी पट्टी की शैली में गालियां देते सुनाई देते हैं। मेजर समीर (दर्शन कुमार) किसी भी लिहाज से पाकिस्तानी सेना के अफसर नहीं लगते। फैजान लगता ही नहीं कि वो आईसिस का इतना खूंखार आतंकी है। साजिद के किरदार में शहाब अली प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहे जबकि उनका किरदार कई परतों में था, महत्वपूर्ण था, बहुत गुंजाइश थी उसमें।
फैमिली मैन के लिए याद किए जाएंगे नीरज माधव, शरीब हाशमी
मूसा के किरदार में नीरज माधव, जेके तलपड़े के किरदार में शरीब हाशमी, सुचित्रा के किरदार में प्रियामणि, अथर्व के किरदार में मास्टर वेदांत सिन्हा, धृति के किरदार में
महक ठाकुर लंबे वक्त तक याद किए जाएंगे। नीरज माधव, शबीर और मास्टर वेदांत सिन्हा की तो निकलने वाली है। बाकी मनोज बाजपेई की एक्टिंग तो सीरीज की जान है ही। अन्य कलाकारों का काम भी अपनी जगह ठीक - ठाक है।
क्रिएशन, निर्देशन और स्टोरी के लिए कृष्णा डीके और राज की जमकर तारीफ होनी चाहिए।
आप भी देख सकते हैं, मजा आएगा।