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Tuesday 27 September 2016

कहानी : गजाला की मोहब्बत


अनुज शुक्ला. 10 साल से ज्यादा वक्त हो गया। मैं नाम भूल रहा हूं उसका। मैं उस बेपरवाह लड़के को हर शाम हर दोपहर अंजी भैया की पीसीओ पर पाता था। उसकी भूरी नीली आँखों में पता नहीं क्या राज दफ़न था। वो आया था यूनिवर्सिटी से बीएससी करने, गोरखपुर या देवरिया के किसी अच्छे खाते पीते घर का लड़का था।

लोग बताते थे कि शुरुआत में वह बिलकुल ऐसा न था। लेकिन धीरे-धीरे पता नहीं क्यों उसका मन पढ़ाई की जगह दूसरी चीजों में लगने लगा। दो तीन साल तक उसने इधर-उधर काटा। फिर बीए करने लगा। कहते हैं कि वह धीरे-धीरे इलाहाबाद की अपराध की दुनिया में सक्रीय होे गयाा था। उसके ताल्लुकात दारागंज के उभरते गैंगस्टर्स से होने लगे थे। वह मुझसे उम्र में काफी बड़ा था। गोरा चिट्टा बेहद खूबसूरत नौजवान।

उस बेपरवाह से लडके का पता अंजी भैया की दूकान ही थी। अंजी हमेशा उसे गलत संगतों से बचने की सलाहें देता था। समझाइश देता था। वह रोज तौबा करता और रोज उन्हीं गलतियों की वजह से daanta जाता। पता नहीं क्या वजह थी घरवालों से उसके रिश्ते बेहद खराब हो गए थे। घर से हर माह की रसद मिलनी बंद हो गई थी लिहाजा अब उसके पास अपना कोई ठिकाना भी नहीं थाा।

कभी किसी के यहाँ रात गुजार लेता। उसके सामान, उसकी किताबें, उसका बक्सा किसके पास था यह आजतक रहस्य है। वह बेहद खामोश नौजवान था। मेरी उससे कभी बातचीत नहीं हुई पर लोगों से जो सुना उसके मुताबिक़ किसी गजाला नाम की एक लड़की से उसे मोहब्बत हो गई थी। लोगों के मुताबिक़ गजाला भी उतनी ही खूबसूरत थी। दोनों की पहली मुलाक़ात एक ट्रेन में हुई थी। दोनों एक दूसरे को गहरा प्यार कर बैठे। मैंने देवदास देखा है उसमें। यकीन मानिए वह बिलकुल वैसा ही था। उसकी पसंदीदा किताब गुनाहों का देवता थी। रात-रातभर शराब पिए उसकी रातें बाँध पर कटती थी।

मुझे दारागंज और शहर छोड़े काफी अरशा हो गया। सालों बाद कई बार मैं उन गलियों में वापिस गया। अंजी भैया की दूकान गायब है। उन गलियों में पुराने चेहरे गायब हैं। मुझे मोहब्बत की कहानियों में दिलचस्पी है। मैं उस नौजवान की हालत की वजह और उनकी मोहब्बत का अंजाम जानना चाहता हूँ। मैं जितना जान पाया वह यह कि वह नौजवान ब्राह्मण था और गजाला लखनऊ की एक मुसलमान लड़की। 

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